इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उम्रकैद की सजा बरकरार रखी, अपील खारिज
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हत्या के एक पुराने मामले में अहम टिप्पणी करते हुए कहा है कि किसी चश्मदीद की गवाही को सिर्फ इसलिए खारिज नहीं किया जा सकता क्योंकि वह मृतक का रिश्तेदार है। यदि गवाही प्रमाण और साक्ष्यों से समर्थित है, तो उसके विश्वसनीय होने पर संदेह नहीं किया जा सकता।
1981 की हत्या, ट्रायल में उम्रकैद, अपील में सजा बरकरार
मामला गाजियाबाद निवासी ब्रह्मजीत द्वारा दर्ज कराई गई एफआईआर से जुड़ा है, जिसमें उन्होंने 28 अक्टूबर 1981 को अपने पिता की हत्या का आरोप लगाया था। ट्रायल कोर्ट ने इस मामले में दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। हालांकि, अपील के लंबित रहने के दौरान कुछ आरोपियों की मृत्यु हो गई।
हाईकोर्ट ने इन आरोपियों की अपील खारिज की
जिन जीवित आरोपियों — बनी सिंह, ओम प्रकाश, चित्तर, सेरनी और तोताराम — ने सजा के खिलाफ अपील की थी, उनकी याचिका खारिज कर दी गई। अदालत ने कहा कि गवाहों की गवाही विश्वसनीय है और मात्र उनके मृतक से संबंध होने के आधार पर उसे अस्वीकार नहीं किया जा सकता।
कोर्ट का आदेश: सजा भुगतें, अपीलकर्ताओं को जेल भेजा जाए
न्यायमूर्ति विवेक कुमार बिड़ला और न्यायमूर्ति नंद प्रभा शुक्ला की खंडपीठ ने ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा। साथ ही अपीलकर्ताओं को हिरासत में लेकर जेल भेजने का निर्देश दिया, जबकि जमानतदारों को मुक्त कर दिया गया।
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